सिपाही से हॉकी के जादूगर बनने तक का सफर: मेजर ध्यान चंद जी | Biography of Major Dhyan Chand ji | National Sports Day |
सिपाही से हॉकी के जादूगर बनने तक का सफर: - मेजर ध्यान चंद जी
हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को संगम नगरी इलाहाबाद में हुआ था। ध्यान चंद को लोग प्यार से दद्दा भी कहते हैं। ध्यान चंद ने भारतीय हाॅकी टीम को ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। दद्दा के बेहतरीन खेल के दम पर ही भारतीय हाॅकी टीम ने 1928 से 1936 तक लगातार जीत दर्ज करते ओलम्पिक खेलों में हुए गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाई थी। हाॅकी स्टीक के साथ उनकी कलाकारी को देख लोग दंग रह जाते थे।
उनकी स्टीक से गेंद इस कदर चिपकी रहती थी कि उनके स्टीक को तोड़कर इसका जांच भी किया गया। इनके खेल से प्रभावित होकर जर्मनी के तनाशाह हिटलर ने उनको जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव दिया था। मेजर ध्यानचंद ने अप्रैल 1949 में हाॅकी से सन्यास लिया। तीन दिसंबर 1979 को हाॅकी के जादूगर का निधन हो गया। मेजर ध्यानचंद के मृत्यु के बाद से लगातार इनको देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देने की मांग उठती रही है। इनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ध्यानचंद से हाॅकी के जादूगर बनने का सफर
साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1922 में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गए और यही ये उनके हाॅकी का जादूगर बनने का सफर शुरू हुआ। ध्यानचंद को हाॅकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी खुद भी हाॅकी के खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हाॅकी खेलने लगे और अपने कठिन परिश्रम व लगन के बल पर कुछ ही समय में वह दुनिया के महान हाॅकी खिलाड़ी बन गये। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल 1949 में हाॅकी के जादूगर ने संन्यास ले लिया।
साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1922 में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गए और यही ये उनके हाॅकी का जादूगर बनने का सफर शुरू हुआ। ध्यानचंद को हाॅकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी खुद भी हाॅकी के खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हाॅकी खेलने लगे और अपने कठिन परिश्रम व लगन के बल पर कुछ ही समय में वह दुनिया के महान हाॅकी खिलाड़ी बन गये। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल 1949 में हाॅकी के जादूगर ने संन्यास ले लिया।
लांस नायक से मेजर बनने तक का सफर
वर्ष 1927 में ध्यान चंद को लांस नायक बना दिया गया। वर्ष 1932 में लाॅस ऐंजल्स में आयोजित ओलम्पिक खेलों के समय उनको नायक बनाया गया। इसके बाद वर्ष 1937 में इनको सूबेदार, 1938 में वायसराय और वर्ष 1943 में लेफ्टिनेंट बना दिया गया। वहीं वर्ष 1948 में कप्तान और बाद में मेजर बना दिए गए।
वर्ष 1927 में ध्यान चंद को लांस नायक बना दिया गया। वर्ष 1932 में लाॅस ऐंजल्स में आयोजित ओलम्पिक खेलों के समय उनको नायक बनाया गया। इसके बाद वर्ष 1937 में इनको सूबेदार, 1938 में वायसराय और वर्ष 1943 में लेफ्टिनेंट बना दिया गया। वहीं वर्ष 1948 में कप्तान और बाद में मेजर बना दिए गए।
एम्सटर्डम ओलम्पिक गेम्स-1928
वर्ष 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया और फाइनल में हाॅलैंड को 3-0 से हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। भारतीय हाॅकी टीम ने इस ओलम्पिक को कोई मैच नहीं गवाई। भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में ध्यान चंद का अहम भूमिका थी। फाइनल में भी तीन में से दो गोल ध्यान चंद ने किया था।
वर्ष 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया और फाइनल में हाॅलैंड को 3-0 से हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। भारतीय हाॅकी टीम ने इस ओलम्पिक को कोई मैच नहीं गवाई। भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में ध्यान चंद का अहम भूमिका थी। फाइनल में भी तीन में से दो गोल ध्यान चंद ने किया था।
लाॅस एंजिल्स ओलम्पिक गेम्स-1932
लाॅस एंजिल्स ओलम्पिक में भी भारतीय हाॅकी टीम ने गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। फाइनल मैच में भारतीय टीम ने अमेरिका को 24-1 के भारी अंतर से हराया था। अमेरिका की इस बुरी हार के बाद एक अमेरिकी समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हाॅकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी, उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के 11 खिलाड़ियों को कुचल दिया।
लाॅस एंजिल्स ओलम्पिक में भी भारतीय हाॅकी टीम ने गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। फाइनल मैच में भारतीय टीम ने अमेरिका को 24-1 के भारी अंतर से हराया था। अमेरिका की इस बुरी हार के बाद एक अमेरिकी समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हाॅकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी, उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के 11 खिलाड़ियों को कुचल दिया।
बर्लिन ओलम्पिक गेम्स-1936
बर्लिन ओलम्कि गेम्स में भारतीय हाॅकी टीम की अगुआई ध्यान चंद ने की थी। इस ओलम्पिक में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीतने की हैट्रिक पूरी की। भारतीय टीम ने फाइलन में जर्मनी को 8-1 के भारी अंतर से हराकर कर जीत दर्ज की थी।
बर्लिन ओलम्कि गेम्स में भारतीय हाॅकी टीम की अगुआई ध्यान चंद ने की थी। इस ओलम्पिक में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीतने की हैट्रिक पूरी की। भारतीय टीम ने फाइलन में जर्मनी को 8-1 के भारी अंतर से हराकर कर जीत दर्ज की थी।
हिटरल भी था ध्यानचंद के खेल का मुरीद
मेजर ध्यानचंद के खेल के मूरीद भारत में ही नहीं अपीतू पूरे विश्व में थे। यही नहीं, ध्यानचंद की प्रतीभा का कायल तत्कालीन जर्मीन के तानाशाह रूडोल्फ हिटलर भी था। हिटलर, ध्यानचंद की प्रतिभा से इस कदर प्रभावित था कि उसने ध्यानचंद को जर्मनी की ओर से खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। यही नहीं वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हाॅकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।
मेजर ध्यानचंद के खेल के मूरीद भारत में ही नहीं अपीतू पूरे विश्व में थे। यही नहीं, ध्यानचंद की प्रतीभा का कायल तत्कालीन जर्मीन के तानाशाह रूडोल्फ हिटलर भी था। हिटलर, ध्यानचंद की प्रतिभा से इस कदर प्रभावित था कि उसने ध्यानचंद को जर्मनी की ओर से खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। यही नहीं वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हाॅकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।
1956 में मिला था पद्मभूषण
मेजर ध्यान चंद को वर्ष 1956 में पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया था। मेजर ध्यान चंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन खिलाड़ियों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार और कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
मेजर ध्यान चंद को वर्ष 1956 में पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया था। मेजर ध्यान चंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन खिलाड़ियों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार और कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
भारत रत्न के लिए लगातार उठ रही आवाज
हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देने की लगातार मांग की जा रही है। भारत रत्न को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है। वहीं, भारतीय ओलम्पिक संघ ने मेजर ध्यान चंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
Source - PATRIKA NEWSहाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देने की लगातार मांग की जा रही है। भारत रत्न को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है। वहीं, भारतीय ओलम्पिक संघ ने मेजर ध्यान चंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
सिपाही से हॉकी के जादूगर बनने तक का सफर: मेजर ध्यान चंद जी | Biography of Major Dhyan Chand ji | National Sports Day |
Reviewed by Govind Nagar Dhakad
on
August 29, 2019
Rating:

👌😊
ReplyDeleteVery nice story
ReplyDeleteThis is really very proudy for our country
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