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नारी सशक्तिकरण (women empowerment) ,,,

अबला से नारायणी तक नारी का ,सियासी सफर.....

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भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनावी मुद्दा किसानों के बाद नारी ही द्ष्टिगोचर होता है। प्रत्‍येक दल नारी हेतु लोकभवन वाली घोषणांए कर सत्‍ता प्राप्ति की चाह रखता है तथा चुनाव के बाद में नारी उत्‍थान की सारी योजनाएं ठंडे बस्‍ते में डाल दी जाती है।
अबला , सबला फिर कल्‍याणी तथा अब इस का नया रूप नारायणी के रूप में सामने आया है, परंतु जब तक इन नारी सशक्‍तीकरण की योजनाओं का उचित क्रियान्‍वयनन नहीं होता है, यह मात्र मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह साबित होगी जिससे देश की प्रत्‍येक नारी स्‍वयं को ठगा हुआ महसूस करेगी।

 यदि हम प्राचीन काल से नजर डालें तो नारी सबला ही प्रतीत होती है, तत्‍कालीन सतयुगी समाज का श्रेय नारियों की उच्‍च स्थिति को दिया जात है। 
वर्तमान में नारी उत्‍थान हेतु जिन उपायों व प्रयासों की बात की जाती है, वे सारे उपाय व प्रयास वैदिक कालीन नारियो की स्थिति मे दिखलाई पड़ते हैं। चाहे वह स्‍वतंत्रता व सम्‍मान की भावना हो या पुरूषों के समान अवसर की उपलब्‍धता हो, वे गृह कार्य के साथ-साथ कृषि प्रशासन व यज्ञ कर्म आदि में हिस्‍सा लेती थी।
अपाला , गार्गी , मैत्री , लोपामुद्रा घोषा यह उदाहरण इस बात की ओर संकेत करते है कि तत्‍कालीन समय में लिंग भेद बिल्‍कुल नही था जिसे हम आज समान करने के लिए तरह तरह के तजन कर रहे है।
अब सवाल यह उठता है कि प्राचीन काल से ही यह भारतवर्ष ‘’यत्र नार्युस्‍तु पूज्यंते स्‍मंते तत्र देवता’’ से अबला नारी का देश कैसे बन गया है। भारत की स्थिति मध्‍यकाल मे स्त्रियों के साथ हुए व्‍यवहार के कारण हुई है सुरक्षा व सम्‍मान की भावना का स्‍थान भोग-विलास की वस्‍तु की सोच ने कब ले निया कोई समझ ही ना सका और उसका परिणाम यह हुआ कि हम आज तकनारी उत्‍थान हेतु प्रयासरत हैं। 


नारी सशक्तिकरण का मुख्य उदाहरण बनी हिमादास पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें:- 

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मध्‍यकाल व्‍यवस्‍‍ता में नारी सबला से अबला में बदल गई व उसके साथ होने वाले भेदभाव व अत्‍याचार बदस्‍तूर जारी हैं।
आधुनिक काल में अंग्रेजों ने व समाज सुधारकों ने स्त्रियों की दशा सुधारने हेतु प्रयत्‍न किया।

वे आंशिक रूप से सफल भी हुए उन्‍होने सती प्रथा , देवदासी प्रथा पर आवाज उठाई तो स्‍त्री शिक्षा तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।
वर्तमान परिद्रश्‍य की बात करें तो आज संपूर्ण देश व समाज में स्‍त्री शिक्षा सुरक्षा स्‍वतंत्रता व सम्‍मान का मुद्दा प्रमुख है , इसी पर भारत में सरकारें बनती और बिगड़़ती है।

आजादी के बाद प्रथम जनगणना के समय स्‍त्री शिक्षा व लिंगानुपात क्रमश: 8.86% व 9.46'/. था, यह स्थिति अपने आप में भयावह थी। इसे दूर करने के लिए कई सरकारी कार्यक्रम व योजनाएं चालू की गई संभवत: यही से नारी सशक्तिकरण चुनावी मुद्दा बनना शुरू हो गया , परंतु योजनाएं तो बन गई लेकिन जमीनी स्तर पर उचित क्रियान्वयन का अभाव रहा। 

गौर इसबात पर किया गया कि योजनाओं के साथ-साथ स्त्रियों को उनके अधिकारों से परिचित करवाना होगा व कानूनी अधिकार प्रदान करने होंगे तत्‍पश्चात सबला योजना, बेटी पढ़ओं , लाडली लक्ष्‍मी जैसे कई कार्यक्रम आए जो संशत: सफल भी हुए तथा दहेज विरोधी अधिनियम 1961,हिंदू विवाह अधिनियम 1955 घरेलू हिंसा निषेध अधिनियम 2005 उत्‍तराधिकार संबंधी अधिनियम 2005 के माध्‍यम से महिलाओं की स्थ्‍िति में सुधार तो हुआ है।

अबला से नारायणी तक नारी का ,सियासी सफर.||.नारी सशक्तिकरण (women empowerment) ,,,| women empowerment|| Plans for Women in india|| women power || अबला से नारायणी तक नारी का ,सियासी सफर.||.नारी सशक्तिकरण (women empowerment) ,,,| women empowerment|| Plans for Women in india|| women power || Reviewed by Govind Nagar Dhakad on July 25, 2019 Rating: 5

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